तुम्हारा सुन्दर-सहज होना,
शिक्षित-आत्मनिर्भर होना,
किसी को भी आकर्षित कर सकता है,
पर !
मेरे पास तो कुछ भी ऐसा नहीं,
जो तुम्हारे आकर्षण का कारन हो,
हाँ पर विकर्षण के कारन अनेक है,
ऐसे में,
तुम्हारी बुद्धिमता ही है,
जिसने तत्काल एक सीमा रेखा खीचा,
और भावनाओं की उमरती बाढ़,
को अनुशाषित कर दिया,
उसकी दिशा और दशा ही बदल दी,
अन्यथा कही ऐसा होता,
की विशाल झील की “छीन धारा”,
जब मनमौजी होती है,
और अपने ही प्रचंड बेग में,
मतवाली हो जाती है,
तो वह,
चन्द्र-पृथ्वी के आकर्षण-विकर्षण में
उत्पन्न ज्वार सी प्रलयंकारी हो जाती है,
जिसे रोक पाना असंभव सा हो जाता है,
हाँ ज्वार और बाढ़,
दोनो का आना प्रकृति ही है,
क्योंकि ?
सृजनता के लिए,
काले बादल,
करकराती बिजली,
सुन्दर जल का बरसना,
गन्दी मिटटी का साफ होना,
फिर सुहाना मौसम,
और फिर हरियाली,
यही तो है मधुर गीतों का चक्र,
कही तुमने इसे रोक तो नहीं दिया ?
1 comment:
Very Nice Poem
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