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Sunday, September 24, 2017

बिखरते हुए रहना ही काफी होगा

मेरी रचनाये बिखर गयी,
ढ़ेर में कहीं खो गयी,
यादों को समेटने की चाह,
समय की नदी में बह गयी,
अब क्या करूँ ?
बहाव में बह जाऊँ,
या फिर पीछे से,
पन्ने  कूड़े से ले आऊँ,
नहीं नहीं !
जो छूट गया सो छूट गया,
आने  बाला भी  छूटेगा,
क्या करूँगा ?
उन पदचिन्हो का,
जो बंचित करेंगे,
भ्रमित करेंगे,
कतारों में होने को बाध्य करेंगे,
अनजान के रोमांच,
आनंद की मिठास,
मैं नहीं छीनना चाहता,
कुछ देने के भ्रम में,
झूठा उजाला फैलाना नहीं चाहता,
मेरी तो चाह है,
भटको,
स्वयंग को जानो,
बहो बहो बहते जाओ,
अनजाने अंधियारों को चिर,
प्रकाश पुंज में समां जाओ,
फिर समेटने की चाह होगी,
जलते हुए रहना,
बिखरते हुए रहना ही काफी होगा,

सच की खोज में

सच की खोज में,
उम्र बीत गयी,
एक पड़ाव पे,
पता चला,
सच तो मिला नहीं,
झूठ के पहाड़ पे,
चलता रहा अब तक,
पीछे मूड के देखा,
कुछ नहीं था,
एक अनुभव,
जो सच है,
अभी है,
जो एक बुलबुला है,
फुट जाता है,
परिस्थिति के बदलते ही,
बदल जाता है,
शब्दों की पहेली में उलझा,
एक शव्द है,
जो अब भी अर्थ ढूंढ़ रहा है,

प्रयास तो झूठ को सच करने में है

कमजोर और विवस
होना अच्छा है,
घुटने टेकना अच्छा है,
बुराई की पहली ही सीढी से,
उतर जाना अच्छा है,
खुद पे अधिक विश्वाश,
करना अच्छा है,
आगे नहीं बढ़ना,
भयभीत होना अच्छा है,
पर !
छिपना छिपाना,
झूठ के सहारे चलना,
अच्छा नहीं,
मार्ग कहाँ ले जाये,
और कब भटका दे,
इसीलिए,
बिना प्रयास,
सिर्फ सच पे चलना,
अच्छा है,
क्यूंकि,
प्रयास तो झूठ को सच करने  में है,