मैं समय के रथ का,
पहिये का वह हिस्सा हूँ ,
जो अंतराल पर ,
बारम्बार !
आघात सहता है,
चुप चाप घिसता है,
समय कि दुरी,
नापता हुआ,
कहीं टूट कर,
बिखर जाता है,
पर !
समय कि यात्रा का ,
पद चिन्ह छोड़ जाता है,
कहीं दूर,
पीछे कि स्मृति,
सुखद मीठी आनंद,
ह्रदय को गुदगुदाती है,
हर घुटन भूलती है,
साडी थकन मिटाती है,
और पुनः,
किसी और,
पहिये का,
हिस्सा बन जाती है,
मैं समय के प्रवाह में,
बहने बाला उसका साथी हूँ,
जिसने कभी,
उसकी शिकायत नहीं कि,
बस उसका साथ निभाया है,
सच्चे साथी कि तरह,
उसको सहा है,
मुह से कुछ नहीं कहा है,
कभी-कभी तो लगता है,
मैं समय का साथी नहीं,
समय का हिस्सा हूँ,
जो मेरे बिना अधुरा है,