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Wednesday, January 22, 2014

वही ज्ञान सही है

क्या करूँ,
मैं उस ज्ञान का,
जो मुझे नहीं सिखा पाई,
खुद को बेचना,
खुद की कीमत लगाना,
और कौड़ियों के मोल,
ठीक उसी बिना तरासे हीरे की तरह,
जोहरी को मोहताज,
कभी इस हाथ से उस हाथ,
कभी इस पैर की ठोकर,
कभी उस पैर की ठोकर,
बाट जोहता उस छैनी हथौड़ी की,
जो काट छांट कर मेरे अस्तित्व को,
इतना चमकीला बना दे,
की कीमत बढा-बढा कर भी,
लोग गर्व का अनुभव करें,
और बार-बार बोली लगे,
और शोभा सुरक्षा में कैद.....
नहीं ! नहीं !
खुद को बेच क्या हासिल कर पाउँगा,
बिकने को बदलना होगा,
और बदलकर बिक जाऊँगा,
मुझे मेरा अस्तिव ही प्रिय है,
बिकने को निखरना नहीं,
निखरने को जीना है,
मेरे लिए वही ज्ञान सही है,
जो मुझे खुश रहना सिखाती है,

एक आश्चर्य

एक आश्चर्य,
जितनी ही कोशिशे करता हूँ,
कुछ साफ-साफ बताने की,
कुछ साफ-साफ समझाने की,
बात अगर विश्वसनीयता की हो,
तो वो भ्रम ही उत्पन्न करता है,
प्रमाणिकता सापेक्ष ही होती है,
ठीक उसी तरह,
जैसे की अणुओं का टकराना,
और उसका पैटर्न ना समझ पाना,
उर्जा का प्रवाह ही सब कुछ है,
जो अनंत आयामों से,
अनिश्चितता की रचना करता है,
और यही इसका रहष्य है,
जो मानव मष्तिस्क के रोचकता,
की कहानी कहता है,

Saturday, January 11, 2014

और तुम्हारे सपनो को भी जिवंत कर पाऊँ.....

मैंने हवा में खुशबु बिखेरा,
पता नहीं,
तुम्हे मिला की नहीं,
मेरे एहसासों की बारिस,
पता नहीं,
तुम्हे भीगा पाई की नहीं,
शब्दों ने कुछ स्पष्ट कहा,
पता नहीं,
तुम्हे समझ आई की नहीं,
पर एक बात स्पष्ट है,
मुझे तुमसे प्रेम है,
 ये सच है व्यक्त करने को शब्द कम पड़ते है,
और अधिक शब्द शायद भ्रमित भी करतें हो,
पर ये ऐसा होता है,
जब कोइ किसी की इतनी फिक्र करता हो,
अपेक्षाओं को पूरा ना करने का डर उसे सताता हो,
कहीं कोई बात आहत न कर दे,
कहीं तुम नज़रों से ओझल न हो जाओ,
इसलिए मूक सा हो जाता हूँ,
समय भी कुछ सुस्त होने को तैयार नहीं,
मुझे चलने को बाध्य करती है,
ईश्वर पर सब छोड़,
सिर्फ प्रयास करने को कहती है,
 प्रेम स्वार्थ नहीं,
यहीं कमजोर सा हो जाता हूँ,
इसीलिए ये उम्मीद जागती है,
की स्वेक्षा से अगर तुम ही मेरा हाथ थामोगी,
प्रभात का सूर्य बनकर मेरे जीवन में आओगी,
तो शायद मैं इस लायक बन जाऊं,
शायद कमल सा खिल जाऊँ,
और तुम्हारे सपनो को भी जिवंत कर पाऊँ.....