कुछ लोगों(ससुराल बाले) को,
अपने बहुओं को,
मैके से अलग करने की कोसिस करते देखा है,
क्योंकि उन्हें डर होता है,
बहुएं उनके घर की बात इधर उधर करती है,
जिससे उनके सम्मान को ठेस
पहुंचती है,
उनके अहंकार पर चोट पहुंचता है,
मुखौटा उतरने का खतरा होता है,
अब झूठी आन-बान-शान,
बचाए रखने को,
उन्हें दवाब की निति अपनानी पड़ती है,
स्नेह की बजाय,
तिरस्कार का प्रहार कर,
बहुओं को तोड़ने की प्रक्रिया चलती है,
महीनो सालो तक,
बहुओं की सहने की परीक्षा होती है,
जब तक वो शारीरिक और मानसिक रूप से गुलाम न हो जाये,
तब तक उन्हें (ससुराल बाले) शांति नहीं मिलती,
इसी बिच कई बार,
बहुएं या तो टूट जाती है,
या तो मार दी जाती है,
या तो पागल बना दी जाती है,
मैके-ससुराल की खिंच-तान,
महाभारत का रूप ले लेती है,
अब सभी को पता है,
महाभारत रक्त पात से सना है,
“जित” किसी की भी हो,
लहू-लुहान सभी होते है,
अपनो को चोटिल होते देख,
कोई भी खुश नहीं रह सकता,
परिणाम सदा घातक ही होता है,
कुछ भी हो अपनो से अपनो का बिछराब ही होता है,
अब ये प्रश्न उठता है,
सदियों से ये कहानिया(महाभारत) घरो में चर्चित रही है,
फिर भी लोग,
न जाने किस अंधेपन में इसे दोहराते रहते है,
क्या भक्त प्रह्लाद सा होना इतना कठिन है ?
क्या स्नेह करना,
सहज होना,
अहंकार रहित होना,
सिखने-सिखाने की चीज है,
या फिर ये बनाबट ही है,
अगर ये बनाबट है तो,
सदा ये महाभारत चलता ही रहेगा,
अगर ये सिखने-सिखाने की चीज है,
तो हम इसे बदल सकते है,
रोक सकते है,
ससम्मान जीने का अधिकार सभी को है,
ऐसा मान लेने मात्र से,
स्नेह का सिंचन,
प्रेम की खुशबू,
बहुओं को खुद ही समर्पण को बाध्य कर देगा,
सच को एक बार परख के तो देखो,
उजियारा ही उजियारा होगा,
खुशियाँ ही खुशियाँ होगी,
एक छोटा सा प्रयोग ही काफी है इसे समझने को,
बंद हो जाओ एक घर में एक फुल के गमले के साथ,
कुछ ही दिनों में मुर्झाजाओगे दोनो,
ताज़ी बहती हवाओं में स्वतः ही झुमोगे,
खुशबु स्वतः ही फैलेगा,
कुछ करने की जरूरत नहीं,
बस प्रकृति को समझाना है,
बहती हुई झरने का,
संगीत बन जाना है,
कुछ ऐसा कभी न करो,
की इतिहास की दलदल में समां जाओ,
क्योंकि इतिहास के शीर्ष पर वही चमकते है,
जिनका ह्रदय स्नेह से भरा है,
कहा भी जाता है,
भरा नहीं वो भावो से जिसमे बहती रश धार नहीं,
ह्रदय नहीं वो पत्थर है जिसमे अपनों का प्यार नहीं,
झील को बहने से मत रोको,
उसी से उसकी सुन्दरता है,
अगर उसे रोकोगे,
तो कालांतर में या तो वो सड़ जाएगी,
या फिर त्रासदी लाएगी,
ये जीवन बहुत छोटी है,
इसे मानवता की जरूरत है,
दानवता की नहीं,
खुश रहना हमारी प्राथमिकता है,
जिओ और जीने दो,
बहुओं से उसका अतीत न छीनो,
अतीत उसकी ख़ुशी है और,
उसकी ख़ुशी ही तुम्हारा भविष्य है,
3 comments:
nice poem....
follow my blog
ts121228.blogspot.com
बहुत अच्छी रचना है |
Post a Comment