क्या ये सच है?
की आज सच,
अपने ही वजूद “सच”,
को बचाने अंधियारे में,
परछाई रहित,
प्रकश से भागती,
झूठ की आर में,
अपने “सच” को छुपाती,
घुटती सिसकती,
वाट जोह रही है कि
कभी तो उजाला होगा,
Hindi kavita by Pankaj Jha. आइए मैं और आप मिलकर अपने विचारो को उड़ान भरने दें और रचनाओं को कल्पनाओं-संबेदनाओं के सतरंगी रश से सराबोर कर दें .........pankajjha23[at]gmail.com