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Thursday, March 7, 2013

मानवता की परख

आग में तपकर ही,
स्वर्ण चमकता है,
और यही उसकी प्रमाणिकता है,
मानव की मानवता की परख,
उसके ज्ञान भरी बातों में नहीं,
बल्कि सहज आचरण से होती है,
सहज होना,
और आग में तपना,
कड़े मानदण्ड की वही रेखा है,
जिसे लक्षमन ने कभी खिंचा था,
और साधू बना रावन उसे पार न कर पाया,
उसकी ज्ञान भरी बातों में आकर,
सीता ने जो भूल की,
वैसा कभी ना करना,
छलने बैठे है रावन यहाँ,
साधू का भेष बनाकर,
कछुवे सा सिमटे रहना,
सीमा पार कभी न करना,  
सीमा पार कभी न करना,  

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