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Friday, December 10, 2010

अजीब अनकही दास्ताँ....

ह्रदय पर बारम्बार,
आघात प्रघात से,
सितार की तरह,
मेरी चीत्कार,
तुम्हे नई राग सी लगती है,
मेरे ह्रदय की ब्यथाएँ,
पता नहीं क्यूँ ?
तुम्हे और ख़ुशी देती है,
मुझे सहमाने को उद्धत,
तुम कभी थकते नहीं,
घुटन भरी सिसकियों,
के राग का बिज्ञान,
मुझे समझ आता नहीं,
कैसे किसी को व्यथित कर,
कोई ख़ुशी से झूम उठता है,
इस सृष्टी की ये....
अजीब अनकही दास्ताँ है......

Friday, December 3, 2010

मेरे मन कि मीत हो तुम

खिलती हुई गुलाब हो तुम,
ओस कि बूंदों से लिपटी हँसती कली,
बहती नदी से झरने तक,
पहाड़ो से वादियों तक,
खलिहानों से पेड़ो के झुरमुट तक,
बर्फीली ढलानों से नीले आसमान तक,
तुम्हारी ही मुसकुराहट है,
तितलियों कि उड़ानों में तुम,
उगते सूरज कि लाली में तुम,
बहती हवाओं कि फ़िजाओं में तुम,
चाँदनी कि शीतल प्रकाश हो तुम,
मेरी धरकनो कि आवाज हो तुम,
मेरी सांसो कि राग हो तुम,
मेरी गुनगुनाई गीत हो तुम,
मेरे मन कि मीत हो तुम |