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Saturday, March 15, 2014

“धन” दिखाबे की रोली है

खुशियाँ और आराम,
धन खर्च कर खरीद सकते है,
खुशियाँ और आराम,
बेच कर धन खरीद सकते है,
बिनिमय ही प्रकृति है,
पर बिनिमय क्यों ?
खुशियाँ और आराम तो,
छन्भंगुर है,
और,
अनुभूति,
बिनिमय को निर्भर नहीं,
अतः,
"अतिश्योक्ति" बिनिमय,
अहंग का तुष्टि मात्र है,
धनदिखाबे की रोली है,

Friday, March 7, 2014

“मौन”

कुछ कोशिशे,
सार्थक प्रयास भी,
जब कोई उत्तर ना लाये,
उलझने बढाती ही चली जाये,
उसी फंदे की तरह,
जिसमे बचने का प्रयास ही,
मृत्यु का कारक होता है,
पर !
व्याकुल मन,
यह नहीं जनता और,
उद्वेलित करता है,
कुछ और स्पष्ट करने की कोशिश,
भीतर चोट मारता है,
और क्रमश:
“मौन” की खोज होती है,     
जीवन की महान उपलब्धि,
जिसे अब किसी उत्तर की प्रतीक्षा नहीं,
आनंद ही आनंद,
असीम और अनंत .....