क्या कोई उनसे जित सकता है ?
जो ढीठ है, मक्कार है,
झूठे है, सबल है,
और ह्रदय विहीन है,
‘नहीं’ !!!!!
हर युग में निरीह ही सहते आये है,
फिर ये तो कलयुग है,
जो जित,
सच की कथाओं में हमने सुना है,
कड़ोड़ो सहनशीलो के पस्त होने के बाद,
किसी ‘अवतारी’ ने ही कर दिखाया है,
जो सहजता का प्रतिक तो होता है,
पर कड़ोड़ो सहनशील की प्रार्थना शक्ती उसके साथ होती है,
अन्यथा सच तो यही है,
समय की विडम्बना है,
की आज जो सबल है,
वही सच्चा है,
और निर्बल झूठ,
जिसे सिर्फ सहना है,
समय की आग में तपना है,
1 comment:
Very Nice Poem
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