Pages

Saturday, February 22, 2014

निक्षेपो पे कविताओं की कलियाँ

अकर्मण्यता,
अयोग्यता,
धनहीनता,
अन्ततः कुंठित ही करता है,
फिर भीतर का ज्वार,
बौधिक बाढ़ सा आता है,
निक्षेपो पे कविताओं की कलियाँ,
रंग बिरंगी खिलती है,
हार को,
थकान को,
कमजोरियों को,
खुद में समेट लेती है,
और कुछ नहीं तो,
विचारो की खुसबू बिखेर देती है,