कभी नहीं सोचा होगा,
चिकने फर्श ने,
की उसकी स्वच्छता चिकनापन ही,
किसी के फिसलने का कारन होगा,
अनजाने ही व्यथित करेगा,
संभल कर चलने बाले को भी,
ठीक उसी तरह,
बेपरवाह चीटियों की कतार को,
कब हम अनजाने ही कुचलतें है,
हमें पता भी नहीं चलता,
सम्बेदनाये भी नहीं रोक पाती,
इन कुदरती बिपदाओं को,
कुदरती इसलिए क्योंकि?
ये अनियंत्रित है,
कभी-कभी हमारे कष्ट,
ऐसे ही अनजाने कारणों से होता है,
ठीक उसी तरह,
जैसे की लोहे पर कई चोट,
लोहे को आहत नहीं कर सकता,
अगर वह ठंढा हो,
यह जाने-अनजाने पर निर्भर नहीं करता,
और अगर लोहा गर्म हो,
तो हलकी चोट भी,
उसे प्रभाबित कर सकती है,
ठीक उसी तरह,
हमारा मन भी,
आहत होता है,
जो पुर्णतः,
तात्कालिक कारणों से प्रेरित होता है,
यह किसी और की नहीं,
हमारे खुद के,
मानसिक स्तर पर निर्भर
करता है,
1 comment:
Very Nice Poem
Read More
Post a Comment