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Thursday, February 13, 2014

दृष्टिकोण

कुछ बहुत दूर,
कुछ और कुछ नहीं के बिच,
अँधेरा और उजियारा,
कुछ कहती है,
तारों का दूर आना या जाना,
रंगों से परिभाषित करना,
तारों की कहानी कहना,
इसमे हमारे दृष्टिकोणों का,
कोई असर नहीं,
क्योंकि ?
प्रकृति या ब्रह्मांडीय घटनाओ को,
परिभाषित किया जा सकता है,
सूत्रित किया जा सकता है,
निष्कर्स तक आया जा सकता है,
पर क्या ?
ऐसी बिशेसज्ञता हमारे पास है,
जो देख कर ही बताये,
किसी की मन की बातें,
जो बहुत पास हो,
आबरण के भीतर,
झांक पाए,
क्योंकि ?
भौतिक घटनाओं की तरह,
इसका कोई क्रम नहीं,
ना ही कोई सुत्र,
इसीलिए यह पूरी तरह,
हमारे दृष्टिकोणों से प्रेरित होता है,
और हम जैसा देखना चाहते है,
वैसा ही प्रतीत होता है,
और निष्कर्ष अनिश्चित,