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Wednesday, January 13, 2021

मैं मेरा स्वप्न और यथार्थ

बिखरे हुए सपने

रेत सा फिसल जाते है

मुट्ठी में कुछ भी रह नहीं जाता

असफल प्रयास बार-बार

थका देता है

भीतर एक डर

लहर बन दौड़ता है

सोचने को मजबूर

आँखे बंद किये

बैठ जाता हूँ

एक शोर धक-धक सा

समँदर के लहरों सा

सांसो से कुछ गरमी

उबलते रक्त के सिथिल होने सा

हवा का स्पर्श

कुछ कहता है मानो

समय नहीं थमने बाला

बह जाओ

छोड़ दो जिद्द

जी लो जो है जी भर के

मत रोको मत पकड़ो

संग हो लो

देखते हुए

सपने को सत्य समझ के

सत्य को सपने समझ के

तुम हो उसी में

वह है तुम्ही में

फिर कैसी कशमकश

रेत मुट्ठी में

या तुम रेत पे

या रेत में

तुम सपने में

या सपने तुममें

तुम उसके नियंत्रण में

या वो तुम्हारे नियंत्रण में

चक्र ही तो है बस

जो तुमने

सुगंध को रोकने की कोसिस की

और वो समां गया तुममे

कहाँ अलग हो पाए

अब तुम सुगंध हो

या सुगंध तुम

शब्दों से तो कुछ कह नहीं पाओगे

तो क्या तुमने कुछ जिया नहीं

कुछ महशुश नहीं किया

तुम्हारे भीतर के अनंत में

या तुम्हारे बाहर के अनंत में

कहाँ अनंत ढूंढोगे

जो है वही अनंत का हिस्सा है

कल आज और कल तुमसे है

तुम नहीं ये छण  नहीं

फिर कैसी असफलता और कैसी सफलता

क्या पकड़ना और क्या छोड़ना

तुम ही समय हो

तुम ही अनंत

तुम ही स्वप्न हो

तुम ही सृजन हो

तुम ही प्रलय हो

तुम ही सत्य हो

और तुम ही हो माया

फिर स्वयं ही स्वयं को कैसे पकड़ोगे

बिखरा हुआ तुम्हारा स्वरुप

कैसे स्वयं समेटोगे

स्वयं से अलग स्वयं को कैसे देख पाओगे

अब हंस भी दो कुछ बोल भी दो

मौन ही मौन

कुछ मौन

तुम्हारे मुट्ठी में

भीतर या बाहर

तुम हो कौन

हाँ सचमुच

मैं हूँ मेरा मौन है

मेरे शब्द है मेरा ब्रह्माण्ड है

हाँ मैं ही मेरा स्वप्न हूँ

और मैं ही मेरा यथार्थ

कुछ शेष नहीं

सब कुछ है मेरे पास

क्योंकि मैं ही तो हूँ सब में सब कुछ में

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