हे प्रिये हे सखी
मैंने लिखा है प्रेम पत्र
इन बिन लिखे खाली पन्नों में
पढ़ लेना
मेरे मनोभाव को
अपने सुन्दर स्वप्नों से
कल्पना के जीवंत रंगो से
प्रेम कहानी सजा लेना
मेरी अनकही गीत
स्वयं ही गुनगुना लेना
मीठी सी गुदगुदी सी
कोमल स्पर्श भांप लेना
क्योंकि शब्दों की सीमाओ से
तुम कहीं आहात न हो जाओ
इसीलिए मैंने ये पत्र
यूँ ही कोरा छोड़ा है
मौन ही मौन को पढ़ सकता
ऐसा मेरा भरोसा है
मै और तुम दो नहीं
ऐसा मेरा समझना है
कहीं पर तुम और
कहीं पर मैं
पर
ह्रदय वही राग रचता है
जिस पर मन तुम्हारा थिरकता है
इक्षाओं से बिषाक्त शरीर-मन
प्रेम समर्पण क्या जाने
इसीलिए मैंने ये पत्र
स्वेत-स्वेत ही छोड़ा है
भर लो अपने रंग तरंग
अपने ही भाव से गा लेना
ना हो प्रेम अगर मुझसे तो
उत्तर कुछ भी लिख देना
शब्दों से शोर से नहीं अपरिचित
अर्थ समझ ही जाऊंगा
भाव अगर तुम तक पहुँचा हो
मौन ही मौन रह जाना
शब्दों की स्वीकृति नहीं
मन में ही मुस्का लेना
ह्रदय के तार ऐसे जुड़े है
नेत्र इसे पढ़ ही लेगा
इसीलिए तो स्वेत प्रेम पत्र में
मैंने स्वयं को भेजा है
पूर्ण समर्पित निर्मल ह्रदय पर
अब तुमको ही तो धड़कना है
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