भव चक्र महासमर में,
जब कृष्ण मौन खड़े थे,
ह्रदय में प्रेम की जोत लिए
राधा असहाय खड़ी थी,
विनास को अग्र्सर नियति,
असत्य आच्छादित होने को था,
रात बड़ी गहरी थी,
पर समय नहीं ठहरा था,
क्षण- क्षण आगे को उन्मुख,
समय करवट को आतुर था,
भक्ति निर्मल कर्म धैर्य से,
शुभ प्रेम की शक्ति प्रवल थी,
अशुभ कर्म का तप हुआ निष्तेज,
जब तेज शक्ति का फूटा था,
प्रेम ही शक्ति का श्रोत,
जग ने तब यह जाना था,
महाप्रलय और सृजन चक्र में,
यह सब तो होना ही था,
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