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Saturday, January 3, 2015

चित्त और पट्ट

चित्त और पट्ट,
दौनो पे तुम्हारा अधिकार,
मेरी दासता,
मेरी कमजोरी को ही बताता है,
पर !
मैंने पूरी कोसिस की,
कि तुम्हारी हाँ पे खड़ी उतरू,
तुम्हारी ना पे खड़ी उतरू,
पर !
तुम्हारी पुरुषार्थहीनता ने,
तुम्हे ध्रितराष्ट्र सा अँधा,
शकुनी सा चालबाज,
और दुर्योधन सा जिद्दी-घमंडी, 
बना दिया है,
जहाँ से तुम खुद को,
सिर्फ जीतते हुए देखना चाहते हो,
और सहते हुए मै हार नहीं सकती,
मैंने तो अपना प्रारब्ध जिया है,
पर तुमने खुद ही,
अपने बर्तमान को जलाया है 
इसका अंत तुम्हे पता है,
तुम अपने ही चित्त से चित्त,
और अपने ही पट्ट से पट्ट हो जाओगे,
तुम मेरे दुखो का कारन हो,
पर तुम्हारी ख़ुशी मुझसे ही है,
मुझे ख़ुशी है,
मेरा अपाहिज होना भी,
किसी का सहारा है,
तुम अपनी सोचो,
जिसके पास सब कुछ है,
फिर भी बिना छल बेबस है,