मंथरा के जहर का तोड़,
राम के पास भी नहीं था,
इसका असर कानो से होते हुए,
माता-पिता पूरा परिवार,
राजा से प्रजा तक को,
चौदह वर्षो तक डंक मारता रहा,
ऐसा ही कुछ होता है,
हमारे समाज में भी,
जब ठीक कश्मीर की तरह का,
भारत-पाक के बिच जैसा,
एक घाव बनाया जाता है,
कुछ लोग अपनी महत्ता बनाये रखने को,
घाव सुखने नहीं देते,
अंतराल पर,
घावो को खुरचते है,
और मरहम लगाकर,
खुद को महत्वपूर्ण बनाते है,
बेचारा कश्मीर,
ईस खीचतान में,
छटपटाता रहता है,
पर ! उसकी बात सुने कौन ?
वो तो बस सिसकने को बाध्य है,
1 comment:
Very Nice Poem
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