Pages

Monday, December 22, 2014

कैसे लिया ये फैसला ?

मुझे याद है पहलीबार, 
तुम आये थे मेरे पास,
मानवता प्रेमी बनकर,
तुमने ज्ञान की बातें की,
विज्ञान की बाते की,
सहयोग की बातें की,
सफलता की बाते की,
सहजता की बातें की,
मुझे भी अच्छी लगी,
तुम्हारी अच्छी-अच्छी बातें,   
इसीलिए आदर भी था तुम्हारे लिए,
पर मुझे नहीं पता था,
एक दिन तुम भी,
वही करोगे जो और करतें है,
मजाक बनाओगे मेरी सहजता का,
प्रणय निबेदन लेकर आओगे,
अपनी कविताओं से जोड़ोगे,
और परेशानी का कारन बनोगे,
तुम्हारी बातों से लगा था,
जीवन को समझते हो तुम,
डिज़ाइन और पैटर्न,
प्रकृति और मनोविज्ञान,
जिक्र किया था तुमने बार-बार,
फिर कैसे की तुमने गलती ?
बिना सोचे समझे,
कैसे लिया ये फैसला ?
मुझे लगा था तुम स्थिर हो,
पर तुम्हारी फुहर सी हरकतें,
तुम्हारी बदहाली की व्यथा सुनाती है,
एक निवेदन मेरी भी है तुमसे,
अपनी बदहाल व्यथा को,
मुझसे एक कोस दूर रक्खो,  
------------
वैसे,
खुबसूरत होता है सचमुच,
अच्छा लगा,
तुम्हारा प्रणय निवेदन,
एक बार तो मैं डर ही गयी थी,
पर मेरा मना करना,
और तुम्हारा उसका सम्मान, 
इतनी सहजता से,
मुझे तो अब्ब भी विश्वाश नहीं,
डिज़ाइन और पैटर्न,
प्रकृति और मनोविज्ञान,
तो कुछ और ही कहते है,

No comments: