भ्रस्टाचार और कुछ नहीं,
शास्त्रों की ही बोली है,
राजनीती की पहली कक्षा,
शाम-दाम-दंड-भेद-निति सिखाती है,
संघर्ष और सामर्थ को ही,
जीने का कारन बताती है,
यह तो विज्ञान के,
बरदान और अभिशाप जैसा ही है,
जो सिर्फ विवेक पर निर्भर है,
और विवेक आचरण का साथी,
आचरण अभ्यास का अनुचर,
अभ्यास आकांक्षा का रूप,
आकांक्षा अहंकार के साथ,
उन्माद से खेलता है,
आकांक्षा अहंकार बिना,
एकाकी सहते हुए जीता है,
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