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Sunday, December 30, 2012

ये आपका स्वरुप है.....


सुना था मैंने,
किसी को व्यथित ना करे,
नहीं तो, उसके आह,
ह्रदय की धाह,
सर्वनास  करती है,
पर विडम्बना है,
मैंने तो ठीक उल्टा ही देखा है,
व्यथित करने बाले,
बैठते हैं ऊँचे तख़्त पे,
उनको किसी की आह नहीं लगती,
उनको किसी का डर नहीं होता,
जमीर उनका धिक्कारता नहीं,
मैंने देखा है,
सहने वाले को,
सही राह पे चलने वाले को,
घुट-घुट कर जीने वाले को,
हतास है निराश हैं,
बिडम्बना यही है,
कि उन्हें फिर भी,
ईश्वर पे  विश्वास है,
सच तो यही है,
हम प्रतिकार करने को समर्थ नहीं,
और ईश्वर कभी आता नहीं,
ऐसे में मानवता-न्याय  शव्द ही,
राजनितिक  मुखौटा लगता है ,
क्योंकि समर्थ होने के लिए,
आज मायावी होना जरूरी है,
और सहज होने पे,
असमर्थ होना स्वभाबिक है,
और ये सच
अगर आप शेर है,
तो आप बकरी को खायेंगे,
अगर आप बकरी है,
तो शेर आपको खायेगा,
अगर आप जरा गौर करे,
तो आपको दिखेगा,
कैसे आप बछरे का दूध,
छिनकर पिते  हो,
गाय  की आह आपको नहीं लगती ,
आप स्वस्थ रहते हो,
बलात्कार आपका सच है,
चाहे वो शारीरिक मानसिक
आर्थिक या फिर आध्यात्मिक है,
ये आपका स्वरुप है।
और अंततः मुझे लगता है,
विवेकी होना,
भीतर से दृढ होना,
मायावी प्रपंच से बचना,
जिव मात्र में श्रद्धा,
सच पे समर्पित,
सहज होकर समर्थ होना,
संभव है,
ध्यान ज्ञान विज्ञान ही,
आपके स्वरुप को बदल सकता है,
और  सिर्फ  यही,
समय के समक्ष,
आपको समर्थ बना सकता है

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