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Wednesday, December 19, 2012

देखना है.....

देखना है,
समय की आग,
सहनशीलता की दाब ,
मुझे अब हीरा बनाती है या राख ,
उम्र की ये लम्बी राह,
कब तक मुझे थकाती  है ?
पता नहीं क्यूँ ?,
हर झंझाबात,
रोमांचित ही करती है,
डर और साहस,
मीठी दर्द सी सिहरन,
सारी थकान मिटाती है,
देखना है,
समय की आग,
कैसे मेरे कर्मो को जलाती है,
कदमो को लाचार,
तक़दीर को बेबस बनाती है,
मूकदर्शिता ही अब मेरी ताकत,
कैसे हवा के रुख को मोड़ती है,
देखना है,
ये ठंढी सी हो रही भीतर की आग,
मुझे अब हीरा बनाती है या राख,

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