Pages

Tuesday, June 26, 2012

आँखे बातें करती है


आँखे बातें करती है,
एक दूसरे के भीतर भी झांकती है,
फिर भी !
 इन्हे समझना आसान नहीं,
क्योंकि यह,
ह्रदय से मस्तिष्क के बिच,
भीतर के कोलाहल में,
उलझ कर रह जाता है,
मस्तिष्क की हलचल,
मन की बेचैनी,
सपनो की कैनवास पर कुछ लिखती है,
पर कुछ स्पस्ट नहीं होती,
सब कुछ वैसा ही दिखता है,
जो हम देखना चाहते है,
होठों की थरथराहट भी साथ छोड़ देती है,
जब आमने सामने होते है,
बस एक दूसरे को देख,
मुस्का के रह जाते हैं,
गर जो थोड़ी हिम्मत हो,
तो ही कुछ सामने आता है,
वर्ना बस यूँ ही,
एक दूसरे में खोये से रह जातें हैं,  

No comments: