"भाईचारा" एक
शब्द,
शताव्दियों से ढूंढ रहा है अर्थ ,
यथार्थ में कुछ और दिखता,
आयने में मायने कुछ और है ,
सहअस्तित्व से भटका हुआ ,
एक "भाई" एक "चारा "है ,
एक खरगोश है ,
एक सियार ,
दोनों में हो भी तो कैसे प्यार ?
एक चाहता एक रहे सब ,
एक चाहता एक रहे बस ,
दोनों में अब होड़ हुई ,
सत्ता की गठ जोड़ हुई ,
“भाईचारे” की जित हुई,
पर ! समय की रेत पर टिक न सकी ,
भाई "चारा" खाने लगा ,
और कुछ "चारे" को भरमाने लगा ,
अब तक हो चुकी थी देर ,
"चारे" को
समझ आ रही थी हेर-फेर,
“भाईचारा” का अर्थ,
अब होने लगा था प्रगट,
"चारे-चारे"
में हो सकती है
"भाई-भाई" में हो सकता है,
"भाईचारा"
पर ! नहीं हो सकता,
"भाईचारा" ,
"भाई" और
"चारे" में,
"भाई-चारे" का अर्थ यही,
समझे इसका फर्क सही,
2 comments:
बहुत खूब क्या लाइनें हैं। पेट की आग इक्षाओं की प्यास, सब कुछ लील लेता है, स्वर्ग और नर्क हर छण, अनंत रूपों में दिखता है, नहीं दिखता तो समय की गति के विरुद्ध अवरुद्ध ठहर टिके रहना.. इन पंक्तियों में बहुत बडा सार छिपा है।
अभी कई जगह पर वर्तनी सुधार की आवश्यकता है। भाव का प्राकट्य कही कही परिलक्षित नहीं होता है।
एक बार समीक्षार्थ मेरी वेबसाइट बखानी मेरे दिल की आवाज मेरी कलम को भी जरूर देखें।
Very Nice Poem
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