मौन से,
जन्मते ही रोना,
और
धीरे धीरे,
दुनिया देख,
सीखना,
हँसना,
झूठ को सच करने का प्रयास,
और
सच को झूठ
और,
अंततः,
हँसने-रोने से मुक्त,
सच और झूठ से परे,
मौन,
क्या है ये ?
क्या यही वो माया है ?
भ्रम है,
जो शरीर धारण करते ही,
शुरू होता है,
और,
क्रमशः,
समझ आता है,
कि जो कहा जा सकता है,
वो सच नहीं,
और,
जो सच है,
वो कहा नहीं जा सकता
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