मैंने हवा में खुशबु बिखेरा,
पता नहीं,
तुम्हे मिला की नहीं,
मेरे एहसासों की बारिस,
पता नहीं,
तुम्हे भीगा पाई की नहीं,
शब्दों ने कुछ स्पष्ट कहा,
पता नहीं,
तुम्हे समझ आई की नहीं,
पर एक बात स्पष्ट है,
मुझे तुमसे प्रेम है,
ये सच है व्यक्त
करने को शब्द कम पड़ते है,
और अधिक शब्द शायद भ्रमित भी करतें हो,
पर ये ऐसा होता है,
जब कोइ किसी की इतनी फिक्र करता हो,
अपेक्षाओं को पूरा ना करने का डर उसे सताता हो,
कहीं कोई बात आहत न कर दे,
कहीं तुम नज़रों से ओझल न हो जाओ,
इसलिए मूक सा हो जाता हूँ,
समय भी कुछ सुस्त होने को तैयार नहीं,
मुझे चलने को बाध्य करती है,
ईश्वर पर सब छोड़,
सिर्फ प्रयास करने को कहती है,
प्रेम स्वार्थ नहीं,
यहीं कमजोर सा हो जाता हूँ,
इसीलिए ये उम्मीद जागती है,
की स्वेक्षा से अगर तुम ही मेरा हाथ थामोगी,
प्रभात का सूर्य बनकर मेरे जीवन में आओगी,
तो शायद मैं इस लायक बन जाऊं,
शायद कमल सा खिल जाऊँ,
और तुम्हारे सपनो को भी जिवंत कर पाऊँ.....
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