समय की चक्रव्यूह में फंसा,
कब से आहत पड़ा,
छटपटाता व्याकुल खड़ा,
दिग्भ्रमित, निराश,
उर्जा अब शेष नहीं प्रयास करने को,
स्वांश मेरे बस में नहीं रोक लेने को,
देखता हूँ इन्ही आँखों से,
कर्म फल की सापेक्ष प्रथाएं,
सुनता हूँ इन्ही कानो से,
समय की अपबादों की कथाएं,
समय की आग में तपते-तपते,
ईश्वर की स्तुति ही शेष है,
सहजता सहनशीलता धैर्य ही,
अब बचा मेरे पास है,
आगे की सुध नहीं,
बीते को मैं खो चूका,
भार ढोने को कुछ नहीं,
सब कुछ मैं भूल चूका,
बर्तमान की धुल को ही,
सर का ताज बनाऊंगा,
स्वप्न मेरे पास अभी तक,
एक दिन सच कर दिखलाऊंगा,
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