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Thursday, June 27, 2013

सिर्फ प्रायस करना सिखाएं

एक मिथक,
जो भयानक है,
माता-पिता और बरे गुरुजन,
यही बताते,
यही सिखाते,
कुछभी संभव है,
कठिन परिश्रम,
लगन समर्पण,
सम्पूर्ण प्रयास से,
जो चाहो गे वो पाओगे,
कच्ची उम्र की लम्बी उड़ाने,
बढ़ती उम्र में रेंगने को मजबूर हो जाती है,
एक सतत प्रयास और,
समय के साथ आने बालि चुनौतियाँ,
तोरने लगती है हौसले,
थक कर पस्त हो जाते है हम,
और
शुरू होती है एक ऐसी कहानी,
जिसमें दुःख की अँधेरी कोठरी,
असफलता का दर्द,
निरासा का अबसाद,
परिणाम में मिलता है,
और हम कोसते है,
अपने आपको,
अपने भाग्य को,
अपने कमियों को,
और लोगों का ताना,
हमारी जिन्दगी का हिस्सा हो जाती है,
जो कुछ थोरे लोग,
कुछ ऊपर उठ जाते है,
वे भी ब्यस्त जीबन के मार को सह नहीं पाते,
और कित्रिम मुस्कूराहट लिए,
नोटों से हंसी खरीदने दरबदर भटकतें है,
कोई जान न ले सच भीतर झांक कर,
इसलिए सभ्यता की स्वांग में,
निश्चलताको को अपने पैरो तलों कुचल देते है,
सच तो यही है,
सफलता की परिभाषा अलग-अलग होती है,
हम कुछभी नहीं पा सकते,
हम कुछभी नहीं कर सकते,
जोकरते है वोपातें हैं,
और हम अपनी बनाबट,
समय-स्थान-परिस्थितियों से घिरे होते है,
फुल पौधे जिव जंतुओं की तरह हम भी,
सीमाओ से बंधे है,
और ये ही सच है की हम,
सिर्फ प्रयास करने को स्वतंत्र है,
फलपाने को नहीं,
ये समय की गर्भ में कुछभी हो सकता है,
ऐसा समझ लेने मात्र से,
हम कभी थकते नहीं,
कभी टूटते नहीं,
और लगातार बार बार,
प्रयास करते है,
बिना किसी निरासा के,
बिना किसी अबसाद के,
बस चलते चले जाते है,
कुछ मिले या ना मिले,
खुशियाँ कदमो तले पुष्प बिखेरती जाती हैं,
इसलिए मेरी एक विनती है,
माता-पिता और बरे गुरुजन से,
वे सच कहें अपने बच्चों से,
झूठी बुनियांदो से बने घरोंदे के टूटने से,
बच्चे टूट ना जाये,
ध्यान रक्खें इसका की,
वे सिर्फ प्रयास करना सिखाएं,
और
सच के कदमो से सहते हुए चलना,

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