कुदरत की विडंबनाओ को,
कैसे व्यक्त करूँ ?
कैसे लिखू जो अजीब है ?
समय की समय में,
बनती-बिगरती पगडंडियाँ,
और होने बाली घटनाएँ,
जिसे ना कहा जा सकता है,
ना समझा जा सकता है,
बस !
सिर्फ महसूस होता है,
ये इतिहास की पन्नो में नहीं,
दैनिक जीबन में ही दिखता है,
और हर एक के साथ ही,
बारिश के बुलबुले की तरह,
कुछ ही समय में समाप्त हो जाता है,
किश्मत की विडम्ब्नाएँ,
उसे बनाने बाला ही जाने,
क्योंकि ?
ज्ञान विज्ञान जहाँ ख़त्म हो जाता है,
बुद्धि भी जहाँ भ्रमित हो जाती है,
वहाँ बस उस मायावी अनंत,
पर ध्यान स्थिर हो जाता है,
और ये भी एक विडंबना ही है,
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