ये माया है,
मायावी नगरी है,
निरीहों की वलिबेदी पर,
ये लगने वाले मेले है,(जनता)
जुल्मो की आहो पे,
ये झुमने गाने बाले है,(सत्ता-शासक)
राक्षसों से भी राक्षस ये,
समय को शर्मिंदा करने बाले है,
जानता हूँ समझता हूँ,
पर ! समय से डरता हूँ,
ये माया है,
मायावी नगरी है,
कमजोर क्यूँ हूँ ?
क्यूँ निन्यानवे से अलग हूँ ,
क्यूँ माया से अनभिज्ञ हूँ,
खुद से ही बातें करता हूँ,
खुद से ही लड़ता रहता हूँ,
इसीलिए इन असुरों से अलग,
सब कुछ सहता रहता हूँ,
ये माया है,
मायावी नगरी है,
युगों से चलती आई,
ये मायाबी कहानी है,
उत्पात के उन्माद पे,
जब सहनशीलता टूटती है,
मैं कमजोर टिमटिमाता जोत,
धधकती ज्वाला बन,
मायावि तिमिर के भ्रम अंत पर,
नए सबेरे का निर्माण करता हूँ,
पुनः यही !!!!!
ये माया है,
मायावी नगरी है.....
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