मेरी कवितायेँ,
आपको अच्छी नहीं लगती,
मैं जानता हूँ क्यूँ?
क्यूंकि आप जब भी पढ़ते हो कवितायेँ,
या तो खुद के लिए लिखी गई होती है,
या फिर औरो से सम्बंधित होती है,
और आपको दोनो में ही मजा आता है,
झूम जाते हो आप,
मस्त हो जाते हो आप,
आपको मेरी और औरो की भी,
घाव का कुरेदना अच्छा लगता है,
सम्बेदना प्रकट करने का,
मौका मिल जाता है,
या फिर ज्ञान ही ज्ञान होता है,
और ये भी अच्छा ही लगता है,
आप विभोर हो जाते हो,
मुस्कुराते हो,
और वाह-वाह कर तालिया बजाते हो,
पर क्यूंकि,
मैं तो आपके ही बारे में लिखता हूँ,
जो भीतर तक आपको,
आपका ही प्रतिबिम्ब दिखाता है,
अपना ही विकृत स्वरुप देखकर ,
आप शर्मिंदगी से भर जाते हो,
अपने ही अस्तित्व से,
आप डर जाते हो,
मेरी कवितायेँ चुभती हैं भीतर तक,
मधुमक्खी से भी तेज डंक,
और आप मेरी कविताओं से,
भागते हो ऐसे अनजान बनकर,
की जैसे आपने कुछ देखा ही न हो,
क्यूंकि आपको लगता है,
आज खड़े रहने के लिए,
भीतर झांकने की नहीं,
सामने देखने की जरूरत होती है,
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