संकेत
है माना मैं "पृथ्वी" हूँ
व्रह्माण्ड
में नक्षत्रों राशियों ग्रहों द्वारा दृस्ट सापेक्ष स्थित
एक ही
समय में उजाले अँधेरे से आच्छादित
एक ही
समय में वर्षा धुप सूखा बाढ़ आदि
विभिन्न
स्वरुप सागर नदी पहाड़ मरुस्थल आदि
ठीक
वैसे ही सगे-सम्वन्धियों-अपनों-परायों के बिच
अलग
अलग रूप लिए एक ही समय में जीता हूँ
मेरा
"सत्य" विविध मेरे लिए भी
और औरो
के लिए भी पहेली है
संतुलन
साध न पाया
अपना
सत्य मुँह से निकाल न पाया
पाप
बोध आत्म ग्लानि प्राश्चित की अग्नि से शुद्ध
जब
अन्तःह्रदय शुद्ध पवित्र होगा
तब
संभवतः रक्त-माँस निर्मित अशुद्ध देह
शुद्ध
हो सत्य धारण के योग्य होगा
आनंद
की प्रतीक्षा में
मैं
"पृथ्वी" सदृश्य अंतरिक्ष में लटकता हुआ
अनंत
की यात्रा में